दबे दर्द से पर्दा , उठाना नहीं कभी।
जख्मों को इस तरह से, दुःखाना नहीं कभी।
कोई आँसू तेरे लिए , सजा न बन जाए ,
'मोहन' को इस तरह से, सताना नहीं कभी।
ऐ खुदा मांगू दुआ, फरियाद करता हूँ,
मेरे जख्मों का बदला उनसे, चुकाना नहीं कभी।
साविके दस्तूर तुम , मय्यत पर मेरी आओगे,
निशां जुल्म-ए-सफ्फाक के, बताना नहीं कभी।
कब्रों में रहने वाले भी, सिसकेंगे रो पड़ेंगे,
कब्रगाह में गज़ल मेरी, गाना नहीं कभी।
महल की दिवालियों में , शिरकत के वास्ते,
किसी जिंदगी का दीपक, बुझाना नही कभी।
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जख्मों को इस तरह से, दुःखाना नहीं कभी।
कोई आँसू तेरे लिए , सजा न बन जाए ,
'मोहन' को इस तरह से, सताना नहीं कभी।
ऐ खुदा मांगू दुआ, फरियाद करता हूँ,
मेरे जख्मों का बदला उनसे, चुकाना नहीं कभी।
साविके दस्तूर तुम , मय्यत पर मेरी आओगे,
निशां जुल्म-ए-सफ्फाक के, बताना नहीं कभी।
कब्रों में रहने वाले भी, सिसकेंगे रो पड़ेंगे,
कब्रगाह में गज़ल मेरी, गाना नहीं कभी।
महल की दिवालियों में , शिरकत के वास्ते,
किसी जिंदगी का दीपक, बुझाना नही कभी।
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