मंगलवार, 26 जनवरी 2016

मैं आग को पीता गया बस आजमाने के लिये

खुद की मौत पर तन्हा था मैं, मांतम मनाने के लिये।
केवल होंठ ही हिलते है, अब बस गुनगुनाने के लिये।।

हालांकि मेरे हाथ से, गिर कर जो टूटा काँच सा,
अरमान ही तो था मेरा, बस मुस्कुराने के लिये।।

उस शाम की महफिल में ,बस दो चार ही तो लोग थे,
मैं था ,  मेरे ग़म थे,   दो  आंसू  बहाने  के  लिये  ।।

वक़्त की रफ्तार में ,मैं भी मिटूंगा, जख़्म भी,
ये लफ़्ज ही रह जायेंगे, मरहम खपाने के लिये।।

मुझको अँधेरी राह में, दीपक दिखाना छोड़ दो,
ये तज़ुर्वा है मेरा, खुद से आँसू छिपाने के लिये ।।

मुझे राह का अन्दाज था, काँटे बहुत होंगे वहाँ,
मैं आग को पीता गया, बस आजमाने के लिये ।।



..ये गीत/कविता/गज़ल आपको कैसी लगी कृपया टिप्पणी( comment) करें।


6 टिप्‍पणियां:

  1. हां निश्चित ही पूरा कर आपके लिये प्रस्तुत करूँगा।

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  2. मैं आग को पीता गया
    बस आजमाने के लिये

    खुद की मौत पर तन्हा था
    मैं, मांतम मनाने के लिये।

    केवल ओठ ही हिलते है,
    अब बस गुनगुनाने के लिये।।

    बहुत सुन्दर मनाष जी

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  3. जमाने में कमी नहीं मनीष ज़हर देने वालों की।
    मैं पीता रहा ज़हर लोगो का दिल रखने के लिए।

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